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Blog / 30 Oct 2019

(आर्थिक मुद्दे) क्यों डूबते सहकारी बैंक? (Why Cooperative Banks are Deteriorating?)

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(आर्थिक मुद्दे) क्यों डूबते सहकारी बैंक? (Why Cooperative Banks are Deteriorating?)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): सुभाष चंद्र पांडे (केंद्रीय उद्योग विभाग), मनोरंजन शर्मा (जनरल मैनेजर)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक ने पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक के प्रबंधन को कुछ महीनों के लिए अपने हाथ में ले लिया है। साथ ही आरबीआई ने बैंक पर तमाम तरह की पाबंदियाँ भी लगा दी है। बैंक की गतिविधियों में अनियमितता पाए जाने के बाद आरबीआइ ने ये क़दम उठाया है। रिजर्व बैंक का यह निर्देश आगामी छह महीने तक लागू रहेगा। बैंक पर आरोप है कि इसने अपने द्वारा दिए गए कर्ज की जानकारी को आरबीआई से छिपाया है। साथ ही इसने कर्ज देने के नियमों का भी उल्लंघन किया है। इसीलिए रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 की धारा 35A के तहत यह कार्रवाई किया है।

कितना दायरा है पीएमसी बैंक का?

पंजाब और महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना 13 फरवरी, 1984 को हुई थी। यह एक बहु-राज्यीय अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक है। 137 शाखाओं के साथ बैंक का ऑपरेशन महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, गोवा, गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में है। इसका कुल कारोबार करीब 20 हजार करोड़ रुपये का है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल इस बैंक में ग्राहकों के 11,617 करोड़ रुपये की राशि जमा है जबकि बैंक ने 8,383 करोड़ रुपये का कर्ज दिया हुआ है। बताया जा रहा है कि पीएमसी ने नियमों की अनदेखी करते हुए अपने कर्ज का एक बड़ा हिस्सा रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन कंपनी एचडीआईएल समूह को ही दे दिया था। बैंक का 73 फ़ीसदी से ज़्यादा का कर्ज एनपीए हो चुका है।

इन सहकारी बैंकों का रेगुलेशन किस तरह किया जाता है?

सहकारी बैंकों का गठन और परिचालन सहकारिता के आधार पर किया जाता है। इनका मकसद शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को कर्ज़ की सुविधा प्रदान करना है। सहकारी बैंक कुछ मामलों में वाणिज्यिक बैंकों से अलग होते हैं मसलन सहकारी बैंक का प्राथमिक लक्ष्य अधिक-से-अधिक लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि अपने सदस्यों को बेहतर सेवाएं और उत्पाद प्रदान करना होता है। पीएमसी बैंक एक शहरी को-ऑपरेटिव बैंक है।

को-ऑपरेटिव बैंकों की स्थापना “राज्य सहकारी समिति अधिनियम" के मुताबिक की जाती है। इनका रजिस्ट्रेशन “रजिस्ट्रार ऑफ को-ऑपरेटिव सोसाइटी" के पास किया जाता है। इनका रेगुलेशन राज्य सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आंशिक रूप से किया जाता है। अमूमन इनकी शाखाएं एक राज्य तक ही सीमित होती है लेकिन कुछ को ऑपरेटिव बैंक ऐसे हैं जिनका दायरा एक से अधिक राज्यों में फैला हुआ है।

क्या दिक्कतें हैं सहकारी बैंकों के सामने?

सहकारी बैंकों का गठन ही सहकारिता के आधार पर किया जाता है लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र के करीब 55 फ़ीसदी लोग अभी तक सहकारिता से जुड़ नहीं पाए हैं। यानी इन बैंकों के सहकारिता का मूल उद्देश्य ही पूरा होता नहीं दिख रहा है इसके अलावा ये बैंक में सभी स्तरों पर अतिदेय यानी ओवरड्यूज की दिक्कत से जूझ रहे हैं। साथ ही बीच-बीच में इस तरह के भ्रष्टाचार के उजागर होने के बाद इन बैंकों की विश्वसनीयता घटती जा रही है। ज्यादातर सहकारी बैंक पेशेवर प्रबंधन की कमी का भी सामना कर रहे हैं।

सहकारी बैंकों की संरचना इस तरह की है कि इन पर द्वैध नियंत्रण का आभास होता है। दरअसल इनका रेगुलेशन और नियंत्रण तो आरबीआई द्वारा किया जाता है लेकिन इसका प्रशासन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ था कि लोगों की तिजोरियों में बंद पैसा बैंकिंग प्रणाली में आ गया था। लेकिन पीएमसी जैसे मामलों के चलते लोगों का विश्वास बैंकिंग प्रणाली पर से कम होता जाएगा। इसलिए इन बैंकों की विश्वसनीयता बनाए रखना काफी अहम है।

  • सहकारी बैंकिंग प्रणाली में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की कमी एक बहुत ही अहम मसला है, जिस पर ध्यान देना बहुत ही जरूरी है।
  • सहकारी बैंकों की संरचना को इस तरह से बनाया जाना चाहिए ताकि इनके जवाबदेही और भी बेहतर तरीके से तय की जा सके।
  • पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी की अध्यक्षता में गठित शहरी सहकारी बैंकों पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों को भी लागू किया जाना चाहिये।